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Showing posts from December, 2021

समाज में बहुत तनाव है क्या, कुछ पता करो, कहीं चुनाव है क्या।

हालांकि राहत इंदोरी साहब ने असल में कहा था - ‘सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता करो कहीं चुनाव है क्या’। मगर राहत जी का सरहद का तनाव चुनाव के चुम्बक से बच नहीं पाता और सरहद के अंदर आ जाता है। चुनाव सरहदों के उस तनाव को इस प्रकार अंदर खींचता है कि दो देशों की सेनाएं नहीं लड़ती बल्कि लोग आपस में युद्ध करने लगते हैं। चुनाव के समय की सामान्य विशेषता यही है कि वह कभी सरहद पर तो कभी सरहद के भीतर तनाव पैदा कर ही देता है। यानि चुनाव का तनाव से ऐसा रिश्ता है जिसने राहत साहब को भी राहत की सांस नहीं लेने दी और उनसे कलम उठवा दी। राहत साहब ने भी कलम उठा दी और इस तनाव का जिक्र कर दिया। पर सभी राहत नहीं होते कि राहत से सोचें और शायराना अंदाज में इसका जिक्र मात्र कर दें। कईंयों को राहत तभी मिलती है जब वो इस तनाव से निकले लहू से उस फसल कि सिंचाई करते हैं, जिसे वे चुनाव के दौरान काटते हैं और अपना राजनीतिक पेट भरते हैं।  यमक अलंकार का इस्तेमाल बंद कर सीधी बात करता हूं। किसान आंदोलन के आखिरी समय से अब तक फासीवादियों ने समाज में अल्पसंख्यकों के खिलाफ तनाव पैदा करने की एक और मुहिम को संगठित तौर पर छेड़ा है

बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरुरत होती है। फिल्म रिव्यू - धमाका

                                      राम माधवानी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘धमाका’ 19 नवंबर 2021 को रिलीज हुई और वाकई में धमाका कर दिया। स्टोरी दो लोगों के इर्द-गिर्द घूमती है। एक है अर्जुन पाठक जो कि एक लीडिंग पत्रकार होने के बावजूद प्राइम टाइम शो से हटा दिया गया है और अब एक रेडियो कार्यक्रम में होस्ट के तौर पर काम कर रहा है। उसकी निजी जिंदगी तनावपूर्ण है क्योंकि अभी हाल ही में उसका तलाक हुआ है। अर्जुन पाठक एक कैरियरवादी, व्यवसायवादी किस्म का पत्रकार है, जो हर हाल में अपने कैरियर में उंची बुलंदियों को छूना चाहता है। दूसरा है खुद को रघुबीर महता कहने वाला तथाकथित आतंकवादी। दोनों किरदारों की बात फोन पर होती है। रघुबीर के शुरुआती संवाद से ही वो दिलचस्प इंसान लगने लगता है - ‘‘अमीरों को क्या लगता है कि सिर्फ वही टैक्स देते हैं, गरीब भी माचिस की डिब्बी से लेकर बिजली के बिल तक हर चीज पर टैक्स देते हैं।’’ पाठक जी को लगता है कि यह एक प्रैंक काॅल है लेकिन उनका भ्रम टूटता है वो भी एक धमाके से। और यह ‘धमाका’ करता है खुद को रघुबीर महता कहने वाला व्यक्ति। भगत सिंह ने कहा था ‘‘बहरों को सुनाने के लिए धम