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Showing posts from June, 2022

सफर जो कभी खतम न हो

सोनी बार-बार अपनी फ्रॉक को नीचे खींचती ,कभी अपनी टांगे छुपाती I वह समझ नहीं पा रही थी कि अपने मां पापा से क्या बोले Iदरअसल बात यह थी कि सोनी पहली बार ट्रेन से अपने माता पिता के साथ हरिद्वार की ओर जा रही थीI गुलाबी रंग की फ्रॉक पहने,सोनी बहुत खुश थी कि वह ट्रेन में बहुत-बहुत मजा करेगी !कभी खिड़की से बाहर देखेगी ,कभी वह नीचे वाली बर्थ पर तो कभी वह ऊपर वाली बर्थ पर बैठेगी I लेकिन माता-पिता की आर्थिक हालत ठीक ना होने के कारण कारण जरनल की टिकट ली गई थी और सोनी को मुसाफिरों से सीट के लिए धक्का-मुक्की के बाद ऊपर वाली लकड़ी की बर्थ पर बिठा दिया गयI I सफर शुरू होने के कुछ ही समय बाद अचानक उसने यह महसूस किया कि कोई उसकी टांगों को बार-बार हाथ लगा रहा हैI जैसे ही वह यह बात समझ पाती, उसने देखा कि नीचे वाली सीट पर एक युवक बैठा हुआ था ,जो बार-बार कभी अंगड़ाई लेने के बहाने तो कभी पसरने के बहाने ,वाहे ऊपर करता और लकड़ी की बनी बर्थ की दरारों में से उसकी टांगों को बार-बार छू रहा था ! इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती उस हवस के पुजारी ने उसके नितंबों पर भी उंगलियां पीनी शुरू कर दीI पहले तो उसने यह सोचा कि वह

कब वक्त मिला कुछ सोच सकूं

जीवन की आपा धापी में कब वक्त मिला कुछ सोच सकूं क्या खोया मैंने क्या पाया, कब कौन सी मैंने राह चुनी, किस मंज़िल ने मुझे अपनाया। हर राह बड़ी पेचीदा थी, हर मंज़िल बड़ी निराली थी, हर दिन की बात अनोखी थी, हर रात बड़ी मतवाली थी। हर सफ़र बड़ा अलबेला था, तन्हाई थी कभी मेला था, हर रोज़ नया कुछ सिखलाया, हर रोज़ नया कुछ दिखलाया। जाने कितनी राहें छूटीं, कई बार कोई मंज़िल रुठी, परेशान हुआ मन घबड़ाया, पर मैं डटा हूं बस अपनी धुन में, क्योंकि ये सफ़र ही तो हूं जीने आया। --ब्रजेश कुमार (Bk)